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वि॒भु प्र॒भु प्र॑थ॒मं मे॒हना॑वतो॒ बृह॒स्पतेः॑ सुवि॒दत्रा॑णि॒ राध्या॑। इ॒मा सा॒तानि॑ वे॒न्यस्य॑ वा॒जिनो॒ येन॒ जना॑ उ॒भये॑ भुञ्ज॒ते विशः॑॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

vibhu prabhu prathamam mehanāvato bṛhaspateḥ suvidatrāṇi rādhyā | imā sātāni venyasya vājino yena janā ubhaye bhuñjate viśaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

वि॒ऽभु। प्र॒ऽभु। प्र॒थ॒मम्। मे॒हना॑ऽवतः। बृह॒स्पतेः॑। सु॒ऽवि॒दत्रा॑णि। राध्या॑। इ॒मा। सा॒तानि॑। वे॒न्यस्य॑। वा॒जिनः॑। येन॑। जनाः॑। उ॒भये॑। भु॒ञ्ज॒ते। विशः॑॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:24» मन्त्र:10 | अष्टक:2» अध्याय:7» वर्ग:2» मन्त्र:5 | मण्डल:2» अनुवाक:3» मन्त्र:10


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर राजा और प्रजा क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - (येन) जिसके आश्रय से (उभये) विद्वान् अविद्वान् दोनों (जनाः) प्रसिद्ध पुरुष (विशः) धनों को (भुञ्जते) प्राप्त होते वह (प्रथमम्) प्रख्यात (विभु) व्यापक (प्रभु) समर्थ उपासना किया हुआ सिद्धिकारी होता है उसके (मेहनावतः) प्रशस्त वर्षाओं के निमित्तक (वाजिनः) प्राप्त होने वा (वेन्यस्य) चाहने (बृहस्पतेः) सबके रक्षक सूर्य के तुल्य प्रकाशयुक्त परमेश्वर के (सातानि) विभाग कर देने और (राध्या) सुखों को सिद्ध करने योग्य (सुविदत्राणि) सुन्दर विज्ञानों के (इमा) ये निमित्त सब लोगों को ग्रहण करने योग्य हैं ॥१०॥
भावार्थभाषाः - राजजन और प्रजा जनों को योग्य है कि सर्वव्यापक शक्तिमान् विस्तीर्ण सुख देनेवाले ब्रह्म की उपासना कर सब मनुष्यादि प्राणियों के सुख साधक वस्तुओं को संग्रह करके राजप्रजा के सुखों को सिद्ध करें ॥१०॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुना राजप्रजे किं कुर्य्यातामित्याह।

अन्वय:

येन उभये जना विशो भुञ्जते तत्प्रथमं विभु प्रभूपासितं सिद्धकारि भवति तस्य मेहनावतो वाजिनो वेन्यस्य बृहस्पतेः सातानि राध्या सुविदत्राणीमा निमित्तानि सर्वैर्ग्राह्याणि ॥१०॥

पदार्थान्वयभाषाः - (विभु) व्यापकम् (प्रभु) समर्थम् (प्रथमम्) प्रख्यातम् (मेहनावतः) प्रशस्तानि मेहनानि वर्षणानि यस्मात् तस्य (बृहस्पतेः) बृहतः पालकस्य सूर्य्यस्येव (सुविदत्राणि) शोभनानि विदत्राणि विज्ञानानि येभ्यस्तानि (राध्या) सुखानि साधयितुमर्हाणि (इमा) इमानि (सातानि) विभज्य दातुमर्हाणि (वेन्यस्य) कमितुं योग्यस्य (वाजिनः) गन्तुं योग्यस्य (येन) (जनाः) प्रसिद्धाः पुरुषाः (उभये) विद्वांसोऽविद्वांसश्च (भुञ्जते) (विशः) धनानि ॥१०॥
भावार्थभाषाः - राजप्रजाजनैः सर्वव्यापकं सर्वशक्तिमद्विस्तीर्णसुखप्रदं ब्रह्मोपास्य सर्वेषां मनुष्यादिप्राणिनां सुखसाधकानि वस्तूनि सङ्गृह्य राजप्रजयोः सुखानि साधनीयानि ॥१०॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - राजा व प्रजा यांनी सर्वव्यापक, शक्तिमान, अत्यंत सुख देणाऱ्या ब्रह्माची उपासना करून सर्व माणसांसाठी सुखकारक वस्तूंचा संग्रह करून राजा व प्रजा यांचे सुख सिद्ध करावे. ॥ १० ॥